रायगढ़।
महाजेंको कोल ब्लॉक के लिए लगभग ढाई हजार हेक्टेयर भू भाग प्रभावित होगा। इसकी वजह से सबसे बड़ी चुनौती आदिवासी और गैर आदिवासी पारंपरिक वन क्षेत्र निवासियों की आजीविका पर सीधे तौर पर प्रभाव पड़ते दिखाई दे रहा है। हजारों ग्रामीण इससे प्रभावित हो चुके हैं और जो बचे हैं अब उन पर इसका सीधा असर दिखाई दे रहा है। क्षेत्र के सैकड़ों एकड़ में फैले जंगल को काट दिया तो जंगली मशरूम सहित वनों पर आधारित आजीविका कमाने वाली जनजातियों के लिए 4 माह के रोजगार का क्या होगा, ऐसे वनांचल निवासियों के लिए मुआवजा क्या होनी चाहिए। ऐसे वनांचल के लोगों के लिए न सम्मानित रोजगार न सरकारी विभागों ने न कंपनियों के सीएसआर से कोई व्यवस्था किया है न ही कोई आर्थिक विकास की योजना बनाई गई है। यहां राजनीतिक दलों के द्वारा सिर्फ और सिर्फ अपने अपने वोट बैंक के हिसाब से एक दूसरे पर राजनीतिक आक्षेप लगाकर अपनी अपनी जिम्मेदारियों से मुंह मोड़ रहे हैं।
यहां वनांचल क्षेत्र के निवासियों की खेती के मजदूरी के अलावा प्रमुख आजीविका का साधन वनों पर आधारित वनोपज से सीधे जुड़ा हुआ है। वनांचल के निवासियों का आस्था का केंद्र जल जंगल ही होता है। विस्थापन से न सिर्फ सीधे तौर पर वनांचल के लोगों की आजीविका पर असर डाल रहा है। क्षेत्र जंगली मशरूम को लेकर भी एक संस्था के द्वारा क्षेत्र में इसके विषय पर एक बड़ा शोध भी किया है। आदिवासी और गैर-पारंपरिक वन निवासियों की आजीविका में मशरूम का महत्वपूर्ण स्थान है। वे इन प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग अपने खाद्य, औषधीय और आय के स्रोत के रूप में करते हैं।
उद्योगों के विस्तार, जैसे कोयला खदान, स्पंज आयरन संयंत्र वा अन्य गतिविधियाँ जिसकी वजह से जंगलों और प्राकृतिक संसाधनों पर विपरीत प्रभाव डाल रही हैं।
इन उद्योगों के कारण होने वाले वायु, जल, और मिट्टी प्रदूषण की वजह से मशरूम उत्पादन पर नकरात्मक प्रभाव का अध्ययन किया गया है। अध्ययन में कहा गया है कि मशरूम के औषधीय गुणों की पहचान की जाए। किस तरह से प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करते हैं और कैंसर, दिल की बीमारियों और अन्य बीमारियों के इलाज में कैसे मदद करते हैं।
तमनार ब्लॉक के विभिन्न गाँवों में मशरूम उत्पादन की क्षमता का आकलन किया गया है। मशरूम का माइकोलॉजी केवल जैविक और पोषण संबंधी महत्व तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह औषधीय, पर्यावरणीय, और आर्थिक क्षेत्रों में भी एक क्रांति ला रहा है। यह रिपोर्ट वर्ष 2024-2025 के दौरान मशरूम पर किए गए प्रमुख शोध, खोज और इसके बढ़ते उपयोग को प्रस्तुत करती है। इनके अलावा साल के चार महीने वनोपज पर आधारित आजीविका से वंचित होने वाले वनांचल क्षेत्र के आदिवासियों गैर आदिवासियों के पारंपरिक आजीविका का क्या होगा। इसके लिए क्या उपाय किए जाने चाहिए या शासन प्रशासन तंत्र द्वारा विशेष तौर पर ऐसे प्रभावितों के लिए क्या कार्य योजना बनाई है इस पर कोई बात नहीं हो रही है।
खान खनन की वजह से प्राकृतिक संसाधनो पर पर्यावरणीय क्षति हो रही है। वनों की कटाई, प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन का असर अध्ययन के मुताबिक तमाम वनोपज पर पड़ रहा है इसमें जंगली मशरूम उत्पादन पर भी प्रभाव पड़ा है। मशरूम की खेती के लिए विशेष जलवायु और पर्यावरणीय परिस्थितियाँ चाहिए होती हैं।
औद्योगिक विकास और खान खनन से इस पर विपरीत प्रभाव पड़ा है। वर्तमान में जंगली मशरूमों के संरक्षण और उत्पादन के लिए गंभीर चुनौतियाँ उत्पन्न हो रही हैं। जो कई मायनों में बेहद अहम होती है।
तमनार क्षेत्र के खान खनन के क्षेत्र में काम करने वाली सामाजिक संस्थाएं इस बात को लेकर चिंतित हैं कि इन
वनांचल क्षेत्रों में आदिवासी महिलाओं और गैर-पारंपरिक वन निवासियों के लिए वनोपज, वन खाद्य, और वन औषधियों के रूप में मशरूम से होने वाले आर्थिक लाभ का आकलन आखिर कौन करेगा। कोयला खदान के लिए हो रही अंधाधुंध पेड़ों की कटाई से खत्म हो रहे जंगल की वजह से इनकी आजीविका पर पड़ने वाले प्रभाव की भरपाई की बात कहीं नहीं हो रही है। राजनीतिक दल अपने हितों को ध्यान में रखकर सिर्फ और सिर्फ आरोप प्रत्यारोप लगाकर अपने मुंह मियां मिट्ठू बन रहे हैं।
चिंता सामाजिक कार्यकर्ता का /-
चिंता केवल क्षेत्र की सम्मानित आजीविका और खाद्य सुरक्षा पर है जो उनके स्वास्थ्य और जीवन के हर पहलुओं में बिना जंगल के हो ही नहीं सकता है जो जंगल काटा गया है वह सामुदायिक वन अधिकार मान्यता में दिया गया जंगल था और बाकायदा वन प्रबंधन समिति गठित की गई थी सरकारी पहल के बाद अब उसका क्या होगा आखिर किसी जंगल की भला क्या मुआवजा बनता है जो प्रकृति ने क्षेत्रीय आदिवासी समुदाय को दिया था।
सविता रथ
सामाजिक कार्यकर्ता
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