Sunday, July 6, 2025
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और “बरहा” शहीद हो गया …जल जंगल जमीन बचाने की मुहिम में …कुछ करता इससे पहले दलालों और माफियाओं के कुचक्र में फंस गया …व्यंग्य एक सच्ची घटना पर आधारित 

जंगली सूअर dead for gate in डीएफओ बंगलो

रायगढ़ । जंगलों के लगातार सिमटते आकार को लेकर न सिर्फ इंसान ही चिंतित नहीं है बल्कि जानवरों में भी इसे लेकर बेहद चिंता बनी हुई है। शायद इसीलिए जंगल के जानवरों ने अपना एक प्रतिनिधि के तौर पर बरहा को वन अधिकारी के समक्ष गुहार लगाने भेजा था लेकिन वह भी दलालों और माफियाओं के कुचक्र में फंस कर जंगली जानवरों की ओर से कुछ समझाने से पहले शहीद हो गया।

जल जंगल जमीन की जुस्तजू में अब इंसानों के ज्ञापन में प्रशासन के कार्रवाईयों की अनदेखी करने लगे तो बीते दिवस कुछ ऐसा हुआ कि जंगल में रहने वाले जानवरों की ओर से बरहा जिसे जंगली सुअर भी कहा जाता है को जंगल के जानवरों की ओर से जिम्मेदारी दी गई ताकि वो जंगल बचाने के लिए विधिवत सरकारी जिम्मेदारों को ज्ञापन देकर अपनी बात रखे। और इसके लिए वह पहुंचा भी शालीनता और संयमितता से जिला मुख्यालय के अधिकारी के समक्ष अपनी बात रखने के लिए पर उसे क्या पता था कि दलालों और गुप्तचरों ने पहले से ही इसकी जानकारी लाल फीताशाहिओ को दे दी है। इस बेचारे बरहा ने अपना पहला प्रयास जैसे ही वन अधिकारी के बंद दरवाजे को खोलने के लिए किया वैसे ही वह पहले से फैलाए षड्यंत्रों की जाल में फंस गया। जिससे वह पहले घायल हुआ इस बहाने को देखकर लालफीताशाही खुश हो गई और घायलों को नहीं मिलने दिया जायेगा का षड्यंत्र रचित कर दी।

बेचारा “बरहा” घायल भी हो गया और लोगों को समझाने में भी सफल नहीं हो पाया की वो तो सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चल रहा था लेकिन लाल फीताशाही ने घेर कर उसे वापस जंगल में छोड़कर आने के बहाने निकली और इस संघर्ष में बेचारे बरहा का तो दम निकल गया और उसे काल के गाल में समाना पड़ गया।

बेचारे बरहा की पीएम रिपोर्ट और घटना की लिखापढ़ी से जुड़े दस्तावेज कहीं न कहीं धूल में समा जायेगी। पर सैल्यूट है उस बरहा को जो जंगल के जानवरों को बचाने के लिए शहीद हो गया।

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