जन्म 20 जून1954 – निधन 01 फरवरी 2021
विकास की नई परिभाषा और विकास के अद्भुत मंजर को देखकर भाई रोशन अग्रवाल आप बहुत याद आए।राजनैतिक विरोधियों के भी हृदय में पूरे आदर सम्मान के साथ दस्तक दिए और आपके संघर्षो ने ऊर्जा का संचार किया। वास्तव में भाई रोशन अग्रवाल संघर्षों में सदैव जीवित रहेंगे। ऐसे व्यक्तियों की मृत्यु नहीं होती समाज की संवेदनाओं और संघर्षों में हमेशा जीवित रहते हैं। विकास की नई परिभाषा को जनता ने देखा, पुलिस बल की भारी मात्रा में मौजूदगी ,बर्बरता,जोरजबरदस्ती, टूटी झोपड़ियों,मकान,कुटिया,रोते, चीखते चिल्लाते लोग, बच्चे, बूढ़े,महिलायें, बच्चियाँ,असहाय , वंचितों,गरीबों के आंसु ,दुःख दर्द और पीड़ा को सहारा देने की आवाज में कहीं न कहीं आपकी आवाज और तेवर को तहे दिल से लोग याद कर रहे थे।यही है मनुष्य के न रहने पर भी उसकी जीवंतता का प्रमाण।जब सामाजिक जीवन में व्यक्ति समाज कल्याण व जनसेवा के लिए समर्पित हो जाता है, तब वह उनके दुःख सुख , संघर्ष या विजय के हर पल में हमेशा उनके मध्य जीवित रहता है।उसके जीवन से भेदभाव, अहंकार, ,ऊँचनीच ,खल,द्वेष, लाभहानि, हिंसा,नफ़रत, सब कुछ ख़त्म हो जाता है।केवल उसका एक मात्र लक्ष्य होता है समाजसेवा और समाज का हित । वही व्यक्ति राजनैतिक व सामाजिक जीवन में सफल, आदर्श और प्रेरणास्त्रोत हो जाता है।
रोशन भाई की स्मृतियों का स्मरण करते हुए यह सवाल बार बार दिलो दिमाग़ को परेशान कर रहा है कि क्या वर्तमान समय में नैतिक,सभ्यता,आदर्श,संस्कार ,मानवीय मूल् ,प्रेम,सद्भाव तथा संवेदनाओं के अर्थ बदल गए हैं। उनकी जगह धन,पूँजी ही प्रधान सर्वश्रेष्ठ हो गया है? शब्दकोश के निहित शब्दार्थ और परिभाषाएँ भी सब कुछ बदल दिए जा रहे हैं?अपनी श्रेष्ठता स्थापित करने के लिए चापलूसी, चाटुकारिता,झूठ और फ़रेब ही एक बड़ा माध्यम या साधन हो गया है? यदि नहीं तो अभी जो मेरीनड्राइव के विकास के नाम पर विकास की नई परिभाषा गढ़ी गई जो हृदय विदारक,मर्मस्पर्शी, अद्भुत मंजर दिखाया गया वह मानवीय संवेदनाओं की हत्या का मर्माहत दृश्य नहीं था क्या ? क्या इससे पहले व्यवस्थित सुंदर एक आदर्श व्यवस्थापन कर , मेरीनड्राइव का विकास नहीं किया जा सकता था ? मेरीनड्राइव के विकास का कोई विरोध नहीं था ।केवल पहले आदर्श व्यवस्थापन करने की बात है।इस तथ्य और सत्य को कहने का साहस किसी भी कार्यकर्ता में नहीं था।इसके बजाय झूठे तथ्य,चापलूसी और चाटुकारिता पूर्ण तर्क वितर्क में लग गए जो बहुत ही शर्मनाक है। सवाल यहाँ से और गहरा हो उठता है कि सिसकती,मुरझाई,दुखी और लाचार ज़िंदगी को और अच्छी बेहतर ज़िंदगी देना मानवता है या उनकी जगह चमचमाती चौड़ी सड़क अनिवार्य है जहां धन्नासेठों,पूँजीपतियों की चमचमाती मँहगी क़ीमती की मोटर गाड़ी बिना अवरोध के दौड़े यह प्राथमिकता है? वस्तुतःदोनो के बीच बेहतर संतुलन व सामंजस्य बनाकर समुचित विकास ही मानवता है। इस घटना ने बहुत सारे सवाल खड़े किए हैं।बहुत सारे नज़ारे देखने को मिले हैं।जिस पर सभी राजनैतिक दलों को चिंतन, आत्मविश्लेषण और विचार विमर्श करने की ज़रूरत है। विकास ज़रूरी है पर मानवीय संवेदना रहित विकास को विनाश के अतिरिक्त कुछ नहीं कहा जा सकता।
साधारण पायजमा, कुर्ता ,पहने स्कुटी में बैठकर नगर भ्रमण करते , लघु हनुमान चालीसा बांटते,सबसे मिलते जुलते ,मारवाड़ी ( हरियाणवी )हिंदी मिलीजूली भाषा में बिना लागल पेट के सीधी बात करने वाले सरल साधारण लेकिन अपने उसूल व उद्देश्य के प्रति सख़्त व पक्के व्यक्ति थे ।रोशन लाल अग्रवाल । जनसंघ,भाजपा के साधारण कार्यकर्ता, दरी बिछाने,माईक व बैठक व्यवस्था करने से लेकर बड़े बड़े नेताओं के स्वागत,सादर सत्कार और उनके आचार विचार संस्कार,नीति व आदर्शों को सीखते अपनाते शनैः शनैः विधायक पदपर आसीन हुए।कोई राजनैतिक विरासत या गॉडफादर नहीं था ,कोई चापलूसी या चाटुकारिता नहीं थी।अपने जीवन के संघर्षों और अनुभवों से ही बहुत कुछ सीखा। भाई रोशन अग्रवाल केवल कहने या दिखावा के लिए नहीं वरन सच्चे हृदय से स्व पीके तामस्कर और रामकुमार अग्रवाल को अपना राजनैतिक गुरु मानते थे। स्व पीके तामस्कर और स्वतंत्रता संग्राम सेनानी जननायक रामकुमार अग्रवाल(एमएलए) आज भी लोगों के हृदय में वास करते हैं। उसूलों और सिद्धांतों पर जीने वाले आदर्श पुरुष थे। कांग्रेस, भाजपा या किसी की भी पार्टी की सरकार हो वे ग़लत नितियो का का खुलकर बेख़ौफ़ हो सख़्त विरोध करते थे।डा. रमन के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार को कई बार कटघरे में खड़ा कर, कड़े से कड़ा विरोध कर,गंभीर संकट खड़ा करने वाले रामकुमार अग्रवाल के सम्मान में उनके व्यक्तित्व व कृतित्व पर केंद्रित स्मारिका का प्रकाशन कर भव्य विमोचन तत्कालीन मुख्यमंत्री माननीय डा.रमन सिंह के कर कमलों से करवाना केवल रोशन लाल अग्रवाल जैसे व्यक्तित्व के ही अधिकार में था।सदस्यता,पद,टिकट इत्यादि का कोई डर भय नहीं।भाजपा के ही कार्यकाल में कलेक्टर या प्रशासन के ख़िलाफ़ खुलकर मोर्चा खोलना,फिर मुख्यमंत्री द्वारा हस्ताक्षेप कर सम्मानजनक हल करवाना यह केवल नैतिक और सैद्धांतिक रूप से मज़बूत व्यक्ति ही कर सकता है।कुछ लोगों को छोड़ कर, अपने ही सरकार में अपने ही मंत्री,विधायकों और नेताओं से आँख में आँख डाल कर वार्तालाप करने सवाल जवाब करने सही ग़लत को जानने समझने का नैतिक साहस राजनैतिक दलों में शायद समाप्त होता जा रहा है। स्वार्थ,लोभ लालच और नैतिक रूप से कमजोर व्यक्ति, जी हुजूरी,चापलूसी और चाटुकारिता के सिवाय कुछ नहीं कर सकता ।वह खुद ही मृततुल्य होता है और परिवार,समाज तथा राष्ट्र के लिए भी हनिकारक होता है।
समाजिक,राजनैतिक परस्थितियों में काफी बदलाव आया है। परिस्थितियां काफी जटिल और गंभीर हो गईं हैं।शहर बारूद के ढेर में तब्दील होता जा रहा है।पर्यावरण ,जल,और जलस्रोत खतरनाक प्रदूषण की चपेट में है।डेम बनने के बावजूद केलो का प्रवाह थम सा गया है। सब कुछ एकजगह ठहर सा गया है। अब दलदल , सड़ांध ,बदबू और घुटन महसूस हो रही है।नगरीय व्यवस्थाओं की समस्यायें जटिल और गंभीर हुई हैं। परन्तु संघर्षों के तीखे स्वर और आंदोलनों की चहल पहल, प्रशासनिक जन संवाद , गंभीर तथ्यात्मक राजनैतिक बहसों की सांसे मानो थम सी गई है। अब राजनैतिक परिस्थियां भी बहुत बदल चुकी हैं।चरित्र,सिद्धांत,आचरण,विश्वास ,नैतिकताऔर लक्ष्य सब बदल गया है।अब वायदों, विश्वास , भरोसे और सेवा की जगह जुमले,नारों,झूठ,फरेब,तमाशेबाजी और इवेंट ने ले ली है।राजनीति समाज व राष्ट्र सेवा से पद , प्रतिष्ठा, दंभ, और पूंजी कमाने का बहुत बड़ा साधन मात्र हो गया है। यह देश के लिए बहुत दुखद और चिंतनीय स्थिति है।
हम कैसा समाज और राष्ट्र का निर्माण कर रहे हैं ? यह यक्ष प्रश्न भी गंभीर चिंता उत्पन्न कर रहा है? स्मृतियां और सवाल ,विचार विमर्श बहुत से हैं।रोशन भाई आप नहीं रहे पर आपका राजनैतिक सामाजिक संघर्ष, कुछ करने की जिजीविषा, सामाजिक सारोकार,बहुत सारे सुंदर सपने हमारे बीच हैं।हर संघर्षों में तुम जिंदा हो, जिंदा रहोगे। तुम्हारी स्मृतियां विस्मृत नहीं हो सकती।
गणेश कछवाहा
रायगढ़, छत्तीसगढ़।
gp.kachhwaha@gmail.com
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