रायगढ़।
विकास के नाम पर मेरीन ड्राइव के निर्माण के लिए सैकड़ों परिवार को बेघर बार कर उनके घरों को उजाड़ने ध्वस्त करने की कार्यवाही से छोटे छोटे बच्चों बूढ़ों महिलाओं की चीख पुकार , हो हल्ला ,मर्म स्पर्शी दृश्य , नगर निगम,कलेक्टर कार्यालय यहाँ तक की अपने जनप्रतिनिधि मंत्री विधायक के निवास तक फ़रियाद सुनाने पूरा मोहल्ला पहुँचा, पर उनकी चीखपुकार दर्द पीड़ा और दुःख को सुनने वहाँ शासन,प्रशासन यहाँ तक की उनके जनप्रतिनिधि मंत्री विधायक जी भी नहीं पहुँचे बल्कि उनकी जगह पूरी तैयारी से पुलिसफ़ोर्स दल बल के साथ पहुँची। यह कैसा लोकतंत्र है?कैसा विकास है ? कि वहाँ की जनता को ही विश्वास में नहीं लिया गया? फिर सवाल यह उठता है कि आख़िर किनके विश्वास और किनके हित के लिए विकास की योजना बनी ? विकास इतना ही ज़रूरी था तो पहले वहाँ के निवासियों के साथ वार्तालाप कर उन्हें विश्वास में लेकर पहले उनके आदर्श विस्थापन की उचित व्यवस्था की जानी चाहिए थी। जब जनता का आक्रोश बढ़ता गया,कांग्रेस का राजनैतिक हस्तक्षेप हुआ तब प्रति प्रभावितों को ₹75000/- मुआवज़ा देने का निर्देश इस अंदाज़ में जारी किया गया मानो खैरात बांट रहे हों।किसी के पूरे जीवन के सपने ,झोपडी, कुटिया,घरोंदे, मकान, घर को अचानक तोड़ कर बेघर बार कर, पैसे की पेशकश वह भी न्यूनतम क्या यह मानवीय दृष्टि कोण को दर्शाता है? उन्हें पैसा नहीं मानव होने का सम्मान, एक घर, अपनी कुटिया,मकान चाहिए ,जहां वह अपने बाल बच्चे बुजुर्गों अपने परिवार के साथ पूरे सम्मान से रह सके,जी सके।निर्धन ही सही पर पूरी मान मर्यादा के साथ जीवन यापन कर सके। । मानवीय संवेदना से रहित विकास कैसा विकास है ? जहां मानवता शर्मशार होती हो, रोती, चीखती,चिल्लाती हो।
समाज के वंचित तथा अंतिम पंक्ति में खड़े लोगों को ध्यान में रखकर नीतियाँ बनाई जानी चाहिए-
लोकतंत्र में जनता सरकार बनाती है ।जनता के ही पैसों से सरकार चलतीहै ।जनता के हितों की रक्षा करना सरकार की अहम ज़िम्मेदारी होती है ।सेठ ,साहूकार , ज़मींदार, राजा महाराजा का राज्य नहीं है ।कि जनता से सलाह मशविरा किए वग़ैर कोई फ़तवा जारी कर दिया जाय फिर उससे प्रभावित लोगों को चंद मुआवज़ा घोषित किया जाय और उनकी सहायता के लिए कोई व्यक्ति या जनता सहायता करे और वह बड़ा दानदाता कहलाए। यह कैसी मानसिकता जन्म ले रही है? उन प्रभावितों को किसी की दया भीख या ख़ैरात नहीं चाहिए सरकार से अपना अधिकार चाहिए।सरकार की योजनाएँ किसी वर्ग विशेष के हित में न होकर , सभी वर्ग की जनता को विश्वास में लेकर जन भागीदारी से ही होनी चाहिए ।समाज के वंचित तथा अंतिम पंक्ति में खड़े लोगों को ध्यान में रखकर नीतियाँ बनाई जानी चाहिए।यह ध्यान रखना चाहिए कि राजनीति समाज व राष्ट्र सेवा का एक पवित्र माध्यम है , कोई रोज़गार या धन अर्जित करने का साधन नहीं है।
मानवीय संवेदना रहित विकास, विनाश के अतिरिक्त कुछ नहीं–
मानवीय संवेदना रहित विकास, विनाश के अतिरिक्त कुछ नहीं ।यह भौतिक चकाचौंध , पूँजी व धन की लोलूपता का एक बहुत बड़ा माध्यम होता है ,जहां इंसानियत का कोई स्थान नहीं होता है। और उसे वे विकास के नाम का ढिंढोरा पीटते हैं।लोकतंत्र में हम अपना प्रतिनिधि चुनते हैं । सुख दुःख में हमारे साथ खड़ा होगा । शासन से हमारे कल्याण ,विकास तथा हमारे हित में कार्य करेगा। लेकिन वह एक वर्ग विशेष का साथ सदैव खड़ा दिखायी देता है । पूँजीपति, धन्ना सेठ, दलाल,धनलोलुप,कुछ स्वार्थी असामाजिक तत्व तथा व्यवसायिक प्रवृति के लोग उसे चारों ओर से घेरे रहते हैं, जयकारा लगाते रहते ,छोटे बड़े कार्य की इतनी प्रशंसा करते हैं मानो की इससे बड़ा कोई कार्य इससे पहले हुआ ही नहीं। सरकार के ज़िम्मेदार मंत्री,अधिकारी से ज़्यादा वे ही उनकी सफ़ाई और प्रशंसा ,उनके गुणगान में लगे रहते हैं।इतनी प्रशंसा और चाटुकारीता से मंत्रमुग्ध हो सही ग़लत को भूल कर वह नेता भी अपने आप को मसीहा समझने लगताहै।वस्तुतः यह सारा खेल पूँजी का है।
गणेश कछवाहा
रायगढ़, छत्तीसगढ़।
94255 72284
gp.kachhwaha@gmail.com
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